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मुनव्वर राना

1952 - 2024 | लखनऊ, भारत

लोकप्रिय शायर, मुशायरों का ज़रूरी हिस्सा।

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मुनव्वर राना के शेर

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मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले

मिट्टी को कहीं ताज-महल में नहीं रक्खा

दहलीज़ पर सर खोले खड़ी होगी ज़रूरत

अब ऐसे में घर जाना मुनासिब नहीं होगा

माँ ख़्वाब में कर ये बता जाती है हर रोज़

बोसीदा सी ओढ़ी हुई इस शाल में हम हैं

वो आदमी है तो एहसास-ए-जुर्म काफ़ी है

वो संग है तो उसे संगसार क्या करना

मैं दुनिया के मेआ'र पे पूरा नहीं उतरा

दुनिया मिरे मेआ'र पे पूरी नहीं उतरी

देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है

कुछ दिनों के लिए मुझ से मिरी आँखें ले जा

भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में

ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है

अदालतों ही से इंसाफ़ सुर्ख़-रू है मगर

अदालतों ही में इंसाफ़ हार जाता है

हम सब की जो दुआ थी उसे सुन लिया गया

फूलों की तरह आप को भी चुन लिया गया

जब भी कश्ती मिरी सैलाब में जाती है

माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में जाती है

निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें

कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं

बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात

मेरी ग़रीब आँखों में स्कूल चुभ गया

बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है

खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे

ये बच्चे की तमन्ना है ये समझौता नहीं करती

मिरी हथेली पे होंटों से ऐसी मोहर लगा

कि उम्र भर के लिए मैं भी सुर्ख़-रू हो जाऊँ

मैं इक दिन बे-ख़याली में कहीं सच बोल बैठा था

मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती

कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में

ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है

फिर कर्बला के ब'अद दिखाई नहीं दिया

ऐसा कोई भी शख़्स कि प्यासा कहें जिसे

मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ

ये रास्ता मिरे घर से निकल के जाता है

तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको

तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है

मुझे भी उस की जुदाई सताती रहती है

उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है

ग़रीबों पर तो मौसम भी हुकूमत करते रहते हैं

कभी बारिश कभी गर्मी कभी ठंडक का क़ब्ज़ा है

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा

अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा

वही हुआ कि मैं आँखों में उस की डूब गया

वो कह रहा था भँवर का पता नहीं चलता

तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे फ़लक

मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता

मैं जब तक घर लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन

माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है

अब आप की मर्ज़ी है सँभालें सँभालें

ख़ुशबू की तरह आप के रूमाल में हम हैं

तुझे मा'लूम है इन फेफड़ों में ज़ख़्म आए हैं

तिरी यादों की इक नन्ही सी चिंगारी बचाने में

हमारी दोस्ती से दुश्मनी शर्माई रहती है

हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ

हम होंगे तो क्या कमी होगी

पचपन बरस की उम्र तो होने को गई

लेकिन वो चेहरा आँखों से ओझल हो सका

जितने बिखरे हुए काग़ज़ हैं वो यकजा कर ले

रात चुपके से कहा के हवा ने हम से

ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ

इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा

मैं इसी मिट्टी से उट्ठा था बगूले की तरह

और फिर इक दिन इसी मिट्टी में मिट्टी मिल गई

मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना

जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते

हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है

मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है

बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है

रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

तुम मुझे ख़्वाब में कर परेशान करो

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था

शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ

माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा

शायद जली हैं फिर कहीं नज़दीक बस्तियाँ

गुज़रे हैं कुछ परिंदे इधर से डरे हुए

दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन

बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था

भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर

ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल लेती है

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है

फिर तो अब क़ैस को जंगल से निकल आने दो

वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली

सारी दुनिया मिरे कमरे के बराबर निकली

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