मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल 55
नज़्म 4
अशआर 32
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
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सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
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इसी उमीद पे जलती हैं दश्त दश्त आँखें
कभी तो आएगा उम्र-ए-ख़राब काट के वो
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