aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सुबहान असद

ग़ज़ल 12

नज़्म 1

 

अशआर 4

हमारी मिट्टी से क्या बनेगा

बहुत बना तो ख़ुदा बनेगा

मैं एक ठहरा हुआ पल तू बहता दरिया है

तुझे मिलूँगा तो फिर टूट कर मिलूँगा मैं

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मैं जानता हूँ तिरी रूह की तलब जानाँ

तुझे बदन की तरफ़ से नहीं छुऊँगा मैं

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ये हम जो बुत हो के देखते हैं

यही तुम्हारी अदा बनेगा

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