aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वारिस किरमानी

1927 - 2012 | अलीगढ़, भारत

वारिस किरमानी

ग़ज़ल 11

अशआर 2

हम नींद की चादर में लिपटे हुए चलते हैं

इस भेस में अब हम से मिलना हो तो जाना

उस से यही कहता हूँ वाजिब एहतिराम-ए-इश्क़ है

अंदर से ये ख़्वाहिश है वो जैसा कहे वैसा करूँ

 

पुस्तकें 17

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