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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहा मैं ने बात वो कोठे की मिरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा कि जाने मिरी बला तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
शिकवा
किस की हैबत से सनम सहमे हुए रहते थे
मुँह के बल गिर के हू-अल्लाहू-अहद कहते थे
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ुव्वत-ए-इश्क़ से हर पस्त को बाला कर दे
दहर में इस्म-ए-मोहम्मद से उजाला कर दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
नज़्म
आवारा
मुंतज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
नज़्म
शायद
मशाम-ए-जाँ में मेरे आश्ती-मंदाना आती हो
जुदाई में बला का इल्तिफ़ात-ए-मेहरमाना है