aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'kausar'"
सलीम कौसर
born.1947
शायर
कौसर नियाज़ी
कौसर मज़हरी
born.1964
लेखक
ख़ुमार बाराबंकवी
1919 - 1999
इक़बाल कौसर
क़ौसर जायसी
1916 - 2005
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
1933 - 2007
नाहीद कौसर
कौसर सीवानी
born.1933
कुशल दौनेरिया
born.1997
गुलनाज़ कौसर
कौसर सिद्दीक़ी
born.1934
नज़ीर क़ैसर
born.1945
सूफ़िया दीपीका कौसर
born.1972
असलम कोलसरी
1946 - 2016
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैंकितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुएवो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए
और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशीहम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं
नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं। ये एक साल को अलविदा कह कर दूसरे साल को इस्तिक़बाल करने का मौक़ा होता है। ये ज़िंदगी के गुज़रने और फ़ना की तरफ़ बढ़ने के एहसास को भूल कर एक लमहाती सरशारी में महवे हो जाता है। नए साल की आमद से वाबस्ता और भी कई फ़िक्री और जज़्बाती रवय्ये हैं, हमारा ये इंतिख़ाब इन सब पर मुश्तमिल है।
लोकप्रिय शायर, फिल्मी गीत भी लिखे।
माशूक़ की एक सिफ़त उस का फ़रेबी होना भी है। वो हर मआमले में धोखे-बाज़ साबित होता है। वस्ल का वादा करता है लेकिन कभी वफ़ा नहीं करता है। यहाँ माशूक़ के फ़रेब की मुख़्तलिफ़ शक्लों को मौज़ू बनाने वाले कुछ शेरों का इन्तिख़ाब हम पेश कर रहे हैं इन्हें पढ़िये और माशूक़ की उन चालाकियों से लुत्फ़ उठाइये।
'कौसर'کوثرؔ
pen name
जदीद नज़्म: हाली से मीराजी तक
नज़्म
Aab-e-Kausar
शैख़ मोहम्मद इकराम
इस्लामिक इतिहास
100 Lafzon Ki Sau Kahaniyan
रेहान कौसर
अफ़साना
Jinhain Raste Mein Khabar Hui
काव्य संग्रह
Ye Charagh Hai To Jala Rahe
Chand Nai Sheri Asnaf
उर्दू की इल्मी तरक़्क़ी में सर सैयद और उनके रुफ़क़ा-ए-कार का हिस्सा
ए एच कौसर
आलोचना
Mauj-e-Kausar
जीवनी
Rood-e-Kausar
Tazkira-e-Sufiya-e-Balochistan
डॉ इनाम-उल-हक़ कौसर
तज़किरा
Atibbaye Ahd-e-Mughaliya
कौसर चाँदपुरी
औषधि
Rude Kausar
Mojiz-ul-Qanoon
अाब-ए-काैसर
जिस तरह लोग ख़सारे में बहुत सोचते हैंआज कल हम तिरे बारे में बहुत सोचते हैं
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थेतुम कभी साहब-ए-किरदार हुआ करते थे
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लियातुम ने क्या सोच कर मोहब्बत की
आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिरहम तिरे वास्ते तय्यार हुआ करते थे
तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकतापर तिरा साथ गवारा भी नहीं हो सकता
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब मेंये सू-ए-ज़न है साक़ी-ए-कौसर के बाब में
तुम ने सच बोलने की जुरअत कीये भी तौहीन है अदालत की
वक़्त के क़द्र-दाँ की नज़रों मेंज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती
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