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ग़ज़ल
वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
नज़्म
शिकवा
फिर ये आज़ुर्दगी-ए-ग़ैर सबब क्या मा'नी
अपने शैदाओं पे ये चश्म-ए-ग़ज़ब क्या मा'नी