aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तअशशुक़ लखनवी
1824 - 1892
शायर
सय्यद सरोश आसिफ़
born.1980
ऐश देहलवी
1779 - 1874
अश्वनी मित्तल 'ऐश'
born.1992
हकीम आग़ा जान ऐश
आसिफ़ फर्ऱुखी
1959 - 2020
लेखक
सदार आसिफ़
आसिफ़ बिलाल
born.2002
अबान आसिफ़ कचकर
born.1999
आसिफ़ रज़ा
यासिर रज़ा आसिफ़
born.1984
आसिफ़ रशीद असजद
born.1981
आसिफ़ शफ़ी
born.1973
आसिफ़ साक़िब
born.1939
आसिफ़ अमान सैफ़ी
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिएया'नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहेयानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवा औरत के लिए रोना भी ख़तामर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा
सबसे प्रख्यात एवं प्रसिद्ध शायर. अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण कई साल कारावास में रहे।
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
तारीख़-ए-अदब-ए-उर्दू
जमील जालिबी
इतिहास
Angrezi Adab Ki Mukhtasar Tareekh
मोहम्मद यासीन
समीक्षा / शोध
उर्दू अदब की मुख़्तसर तरीन तारीख़
सलीम अख़्तर
Akhbar-us-Sanadeed
नजमुल ग़नी ख़ान नजमी रामपुरी
भारत का इतिहास
इक़बाल का फ़लसफ़ा-ए-ख़ुदी
आसिफ़ जाह कारवानी
शोध
Alf Laila (Hazaar Daastaan Mukammal)
अननोन ऑथर
दास्तान
Tareekh-e-Adab-e-Urdu
राम बाबू सकसेना
Urdu Ki Ibtidai Nash-o-Numa Mein Sufiya-e-Karam Ka Kam
मौलवी अब्दुल हक़
भाषा
उर्दू नॉवेल निगारी
सुहैल बुख़ारी
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
A History of Indian Literature
ए शिमल
Practice of Medicine
डॉ. दौलत सिंह
औषधि
Fort William College
वक़ार अज़ीम
साहित्यिक आंदोलन
Deewan-e-Ghalib Urdu
मिर्ज़ा ग़ालिब
दीवान
तिब्ब-ए-अकबर उर्दू
मोहम्म्द अकबर अरज़ानी
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
Bahr-ul-Fasahat
सदा ऐश दौराँ दिखाता नहींगया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
हो के वो ख़्वाब-ए-ऐश से बेदारकितनी ही देर शल रही होगी
इस को ही जीना कहते हैं तो यूँ ही जी लेंगेउफ़ न करेंगे लब सी लेंगे आँसू पी लेंगे
ज़ुल्म सह कर जो उफ़ नहीं करतेउन के दिल भी अजीब होते हैं
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदनदेखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
उभारते हों ऐश परतो क्या करे कोई बशर
दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-ऐश कोसुब्ह-ए-बहार पुम्बा-ए-मीना कहें जिसे
ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा हैदिल को अब दिल-दही से ख़तरा है
काश हम को भी हो नसीब कभीऐश-ए-दफ़्तर में गुनगुनाने का
'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़काजिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा
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