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ग़ज़ल
ऐ बे-दरेग़ ओ बे-अमाँ हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ
हम को तिरी वहशत सही हम को सही सौदा तिरा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
शिकवा
आतिश-अंदोज़ किया इश्क़ का हासिल तू ने
फूँक दी गर्मी-ए-रुख़्सार से महफ़िल तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आवारा
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
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ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दो इश्क़
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है