aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "اقوال"
अल्लामा इक़बाल
1877 - 1938
शायर
ज़फ़र इक़बाल
born.1933
अज़हर इक़बाल
born.1978
अम्मार इक़बाल
born.1986
इक़बाल साजिद
1932 - 1988
इक़बाल अशहर
born.1965
इक़बाल अज़ीम
1913 - 2000
हसरत जयपुरी
1922 - 1999
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
born.1940
फ़रह इक़बाल
आफ़ताब इक़बाल शमीम
फ़हीम शनास काज़मी
इक़बाल अशहर कुरैशी
1950 - 1993
इक़बाल कौसर
इक़बाल सफ़ी पूरी
1916 - 1999
लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को...
मैं बग़ावत चाहता हूँ। हर उस फ़र्द के ख़िलाफ़ बग़ावत चाहता हूँ जो हमसे मेहनत कराता है मगर उसके दाम अदा नहीं करता।...
आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ देखते हैं... ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं आ सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियाँ मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल...
पहले मज़हब सीनों में होता था आजकल टोपियों में होता है। सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। ज़िंदाबाद टोपियाँ।...
दुनिया में जितनी लानतें हैं, भूक उनकी माँ है।...
अल्लामा इक़बाल की शख़्सियत एक अह्द-साज़ शायर और फ़लसफ़ी के तौर पर जानी और पहचानी जाती है। इस कलेक्शन में उनकी कुछ ग़ज़लें शामिल हैं और ख़ास बात ये है कि आप इन ग़ज़लों को ज़िया मोहीउद्दीन की आवाज़ में सन भी सकते हैं।
प्रमुखतम आधुनिक शायरों में विख्यात नई दिशा देने वाले शायर
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
अक़वालاقوال
sayings, aphorisms
किसी बड़े व्यक्ति के कहे कथन/प्रवचन
'कौल' का बहु., किसी बड़े व्यक्ति या धर्माचार्य के कहे हुए प्रवचन।
Aqwal-e-Zarreen
आबाद अहमद फ़ारूक़ी
टिप्पणियाँ
Aqwaal-e-Hikmat
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ाँ
उपदेश
Ganjeena-e-Aqwal
सईद ए. शैख़
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Bang-e-Dara
शायरी
Allama Iqbal Ke Ashaar
बैत-बाज़ी
अक़वाल-ए-औलिया
मोहम्मद शरीफ़ नक़्श्बंदी
नक्शबंदिया
अक़वाल-ए-मिर्ज़ा बेदिल
अब्दुल क़ादिर बेदिल
Allama Iqbal : Taqreerein, Tahreerein Aur Bayanat
व्याख्यान
इक़बाल का फ़लसफ़ा-ए-ख़ुदी
आसिफ़ जाह कारवानी
शोध
Bal-e-Jibreel
Kulliyat-e-Iqbal Urdu
कुल्लियात
Dr. Allama Iqbal Ke Shikwa, Jawab-e-Shikwa Ki Nasri Tarjumani
शायरी तन्क़ीद
Iqbal Nama
चराग़ हसन हसरत
आलोचना
Shikwa Jawab-e-Shikwa
नज़्म
Aap Beeti Allama Iqbal
डॉ. ख़ालिद नदीम
आत्मकथा
दिल ऐसी शैय नहीं जो बाँटी जा सके।...
ज़माने के जिस दौर से हम इस वक़्त गुज़र रहे हैं अगर आप इससे नावाक़िफ़ हैं तो मेरे अफ़साने पढ़िये। अगर आप इन अफ़्सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इस का मतलब है कि ये ज़माना नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है... मुझ में जो बुराईयाँ हैं, वो इस अह्द की बुराईयां हैं......
भूक किसी क़िस्म की भी हो, बहुत ख़तरनाक है।...
ग़ुस्सा जितना कम होगा उस की जगह उदासी लेती जाएगी।...
वेश्या और बा-इस्मत औरत का मुक़ाबला हर्गिज़-हर्गिज़ नहीं करना चाहिए। इन दोनों का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता। वेश्या ख़ुद कमाती है और बा-इस्मत औरत के पास कमा कर लाने वाले कई मौजूद होते हैं।...
अगर एक ही बार झूट न बोलने और चोरी न करने की तलक़ीन करने पर सारी दुनिया झूट और चोरी से परहेज़ करती तो शायद एक ही पैग़ंबर काफ़ी होता।...
लाहौर की बाअ्ज़ गलियाँ इतनी तंग हैं कि अगर एक तरफ़ से औरत आ रही हो और दूसरी तरफ़ से मर्द तो दरमियान में सिर्फ़ निकाह की गुंजाइश बचती है।...
औरत हाँ और ना का एक निहायत ही दिलचस्प मुरक्कब है। इन्कार और इक़रार कुछ इस तरह औरत के वुजूद में ख़ल्त-मल्त हो गया है कि बाअज़ औक़ात इक़रार-इन्कार मालूम होता है और इन्कार-इक़रार।...
जिस्म दाग़ा जा सकता है मगर रूह नहीं दाग़ी जा सकती।...
हिन्दुस्तान को उन लीडरों से बचाओ जो मुल्क की फ़िज़ा बिगाड़ रहे हैं और अवाम को गुमराह कर रहे हैं।...
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