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नज़्म
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये दुनिया है या 'आलम-ए-बद-हवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे