aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "برابری"
कृष्ण बिहारी नूर
1926 - 2003
शायर
पतरस बुख़ारी
1898 - 1958
लेखक
हिमांशी बाबरा
इदरीस बाबर
born.1973
अटल बिहारी वाजपेयी
1924 - 2018
नज़ीर बाक़री
गणेश बिहारी तर्ज़
1932 - 2008
फ़ारिग़ बुख़ारी
1917 - 1997
शोहरत बुख़ारी
1925 - 2001
आग़ा बाबर
1919 - 1998
करामत बुख़ारी
गुलज़ार बुख़ारी
born.1949
ए. एस. बुख़ारी
बाबर रहमान शाह
born.1994
इलियास बाबर आवान
born.1976
वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गयाबराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता
लेकिन मग़्विया औरतों में ऐसी भी थीं जिनके शौहरों, जिनके माँ-बाप, बहन और भाईयों ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया था। आख़िर वो मर क्यूँ न गयीं? अपनी इफ़्फ़त और इस्मत को बचाने के लिए उन्होंने ज़हर क्यूँ न ख़ा लिया? कुएं में छलाँग क्यूँ न लगा दी? वो...
जहाँ में रह के जहाँ से बराबरी की ये चोटइक इम्तिहान-ए-मुसलसल मिरी अना के लिए
एक दिन मैं और मेरा भाई ठट्ठियाँ के जौहड़ से मछलियाँ पकड़ने की नाकाम कोशिश के बाद क़स्बे को वापस आ रहे थे तो नहर के पूल पर यही आदमी अपनी पगड़ी गोद में डाले बैठा था और उसकी सफ़ेद चुटिया मेरी मुर्ग़ी के पर की तरह उसके सर से...
मिज़ाहिया शायरी बयकवक़्त कई डाइमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तल्ख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इन्सानों के ग़लत रवय्यों पर तंज़ करने का मौक़ा भी। तंज़ और मिज़ाह के पैराए में एक तख़्लीक़-कार वो सब कह जाता है जिसके इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के इन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।
दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है। इस त्योहार का जश्न चुनिंदा उर्दू शायरी के साथ मनाइए।
शायरी में वतन-परस्ती के जज़्बात का इज़हार बड़े मुख़्तलिफ़ ढंग से हुआ है। हम अपनी आम ज़िंदगी में वतन और इस की मोहब्बत के हवाले से जो जज़्बात रखते हैं वो भी और कुछ ऐसे गोशे भी जिन पर हमारी नज़र नहीं ठहरती इस शायरी का मौज़ू हैं। वतन-परस्ती मुस्तहसिन जज़्बा है लेकिन हद से बढ़ी हुई वत-परस्ती किस क़िस्म के नताएज पैदा करती है और आलमी इन्सानी बिरादरी के सियाक़ में उस के क्या मनफ़ी असरात होते हैं इस की झलक भी आपको इस शेअरी इंतिख़ाब में मिलेगी। ये अशआर पढ़िए और इस जज़बे की रंगारंग दुनिया की सैर कीजिए।
बराबरीبرابری
equality
समता, यकसानी, धृष्टता, गुस्ताखी, मुक़ाबला, सामना, उद्देडता, सरकशी।।
Patras Ke Mazameen
लेख
Tarjuma-e-Tuzuk-e-Babri Urdu
ज़हीरुद्दीन बाबर
इतिहास
Urdu Dastan
सुहैल बुख़ारी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Parliament Se Bazar-e-Husn Tak
जहीर अहमद बाबर
राजनीतिक
उर्दू नॉवेल निगारी
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
गद्य/नस्र
Intikhab-e-Mazameen-e-Patras
Kulliyat-e-Patras
Sarguzisht
ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
आत्मकथा
Patras Bukhari
मैमूना वहीद
आलोचना
Hamari Paheliya
सय्यद यूसुफ़ बुख़ारी
पहेली
Younhi
शाइरी
Pashto Shairi
Punjabi Padhai Likhai
सीता राम बाहरी
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरीवाँ लुत्फ़ कम हुआ तो यहाँ प्यार कम हुआ
मिरी सिपाह से दुनिया लरज़ने लगती हैमगर तुम्हारी तो मैं ने बराबरी नहीं की
اک نہر تھی شہر کے برابرٹھٹکے سیارے کہکشاں پر
۲۔ محاکات کا اصلی کمال یہ ہے کہ اصل کے مطابق ہو۔ یعنی جس چیزکا بیان کیا جائے، اس طرح کیا جائےکہ خود وہ شے مجسم ہوکر سامنے آجائے۔ شاعری کا اصلی مقصد طبیعت کا انبساط ہے، کسی چیزکی اصلی تصویر کھینچنا خود طبیعت میں انبساط پیدا کرنا ہے۔ (...
मिरे ख़याल से भी आह मुझ को बोद रहाहज़ार तरह से चाहा बराबरी न हुई
और फिर कई साल गुज़र गए। उसे बहर-ए-क़ुल्जुम, बहर-ए-रुम और बहर-उल-काहिल के साहिल याद आते। उसका जी चाहता कि वो ज़मीन पर जाए। ज़मीन की सी नर्म रेत किसी सय्यारे में नहीं है। अक्सर सय्यारों की खुरदुरी और सख़्त ज़मीन पर चलते हुए उसे ज़मीन की रेत की गर्मी और...
तुझ से मेरी बराबरी ही क्यातुझ को इंकार की सुहूलत है
ग़म-ए-हबीब कहाँ और कहाँ ग़म-ए-जानाँमुसाहिबत है यक़ीनन बराबरी तो नहीं
आज उसने कल का रास्ता छोड़ दिया और खेतों की मेंडों से होती हुई चली। बार-बार ख़ाइफ़ नज़रों से इधर-उधर ताकती जाती थी। दोनों तरफ़ ऊख के खेत खड़े थे। ज़रा भी खड़खड़ाहट होती तो उसका जी सन्न से हो जाता। कोई ऊख में छुपा बैठा न हो। मगर कोई...
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