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ग़ज़ल 13
शेर 5
चलूँ तो मस्लहत ये कह के पाँव थाम लेती है
वहाँ जाना भी क्या हासिल जहाँ से कुछ नहीं होता
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जाने वालों की कमी पूरी कभी होती नहीं
आने वाले आएँगे फिर भी ख़ला रह जाएगा
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रंग-ओ-बू का शौक़ आशोब-ए-हवा में ले गया
तितलियाँ घर से निकल कर इब्तिला में खो गईं
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