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ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
महफ़िल में उस ने ग़ैर को पहलू में दी जगह
गुज़री जो दिल पे क्या कहें 'बिस्मिल' किसी से हम