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ग़ज़ल
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
हास्य
कितने ही ग़ालिब-ए-दौरान हमें गर्दानते हैं
'नूर'-भय्या हूँ कि 'ताबाँ' सभी पहचानते हैं
पॉपुलर मेरठी
ग़ज़ल
यार बाँका है मिरा छुट तेग़ नईं करता है बात
उस से ऐ 'ताबाँ' मैं अपना जी बचाऊँ किस तरह
ताबाँ अब्दुल हई
ग़ज़ल
दूँ सारी ख़ुदाई को एवज़ उन के मैं 'ताबाँ'
कोई मुझ सा बता दे तू ख़रीदार बुताँ का
ताबाँ अब्दुल हई
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शेर
देख क़ासिद को मिरे यार ने पूछा 'ताबाँ'
क्या मिरे हिज्र में जीता है वो ग़मनाक हनूज़
ताबाँ अब्दुल हई
ग़ज़ल
वो ख़ाक समझेंगे राज़-ए-गुल-ओ-समन 'ताबाँ'
जो रंग-ओ-बू को फ़रेब-ए-नज़र समझते हैं