aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ناک"
मीना कुमारी नाज़
1933 - 1972
शायर
नाज़ ख़यालवी
1947 - 2010
नाज़ बट
नाज़ क़ादरी
1940 - 2019
लेखक
नाज़ मुरादाबादी
फरज़ाना नाज़
निसार नासिक
1943 - 2019
मरयम नाज़
अतहर नासिक
1959 - 2012
शेर सिंह नाज़ देहलवी
1898 - 1962
नाज़ मुजफ़्फ़राबादी
ज़ोहैब नाज़ुक
शगुफ़्ता नाज़
नईम नाज़
नाज़ वाई
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों कोबात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को
बरसात के यही दिन थे। खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे। सागवान के इस स्प्रिंगदार पलंग पर जो अब खिड़की के पास से थोड़ा इधर सरका दिया गया था एक घाटन लौंडिया रणधीर के साथ चिपटी हुई थी।खिड़की के पास बाहर पीपल के नहाए हुए पत्ते रात के दूधिया अंधेरे में झूमरों की तरह थरथरा रहे थे और शाम के वक़्त जब दिन भर एक अंग्रेज़ी अख़बार की सारी ख़बरें और इश्तिहार पढ़ने के बाद कुछ सुनाने के लिए वो बालकनी में आ खड़ा हुआ था तो उसने उस घाटन लड़की को जो साथ वाले रस्सियों के कारख़ाने में काम करती थी और बारिश से बचने के लिए इमली के पेड़ के नीचे खड़ी थी, खांस खांस कर अपनी तरफ़ मुतवज्जा कर लिया था और उसके बाद हाथ के इशारे से ऊपर बुला लिया था।
इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की ना'शदुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शबतिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ देखते हैं... ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं आ सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियाँ मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं... इन गाड़ियों का वुजूद ज़रूरी है और उन औरतों का वुजूद भी ज़रूरी है जो आपकी ग़लाज़त उठाती हैं। अगर...
उर्पदू में र्तिबंधित पुस्तकों का चयन
उर्दू नात की दस बेहतरीन किताबें यहां पढ़ें। इस पेज पर नात शायरी की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकें उपलब्ध है, जिसे रेख़्ता ने ई-पुस्तक पाठकों के लिए चुना है।
मशहूर शाइ’र जो मुशाइ’रों से दूर रहे। अगरा में पैदाइश। पहले सरकारी नौकरी की और फिर कई व्यवसायिक संस्थाओं से जुड़े रहे।आज़ादी के बा’द कराची जा बसे।उ’मर ख़य्याम और मिर्ज़ा‘ ग़ालिब’ की रुबाइयों का उर्दू अनुवाद किया।मर्सिये भी लिखे।
नाकناک
nose
Hairat Nak Kahaniyan
जमील जालिबी
2013कहानी
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
2009आलोचना
तन्हा चाँद
काव्य संग्रह
Haibat Nak Afsane
1943कहानी
ज़ेर-ए-लब
सफ़िया अख़्तर
इतिहास एवं समीक्षा
Tamasha Ghar
इक़बाल मजीद
2003अफ़साना
Kulliyat-e-Nafeesi
अबू अली सीना
1935औषिधि
Dastak Na Do
अल्ताफ़ फ़ातिमा
ऐतिहासिक
Asli Meelad-e-Akbar Warsi
मोहम्मद अकबर वार्सी
नात
Urdu Novel ka Safar
2001फ़िक्शन
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है
रोहिणी नीलेकणी नोनी
2008बाल-साहित्य
Ajaibaat-e-Farang
यूसुफ़ खां कम्बल पोश
1983सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Bayaaz-e-Jaan
आग़ा सरोश
Kulliyat-e-Hasan
मोहम्मद हसन रज़ा खान
2012कुल्लियात
Urdu Mein Naat Goi
रियाज़ मजीद
1990
शाम है कितनी बे-तपाक शहर है कितना सहम-नाकहम-नफ़सो! कहाँ हो तुम जाने ये सब किधर गए!
ज़र्रे नहीं ज़मीं पे सितारे चमकते हैंहै आब-ए-नहर सूरत-ए-आईना जल्वा-गर
मेरा ख़याल है कि मेरे होश-ओ-हवास पूरी तरह सलामत नहीं थे। गंदे नाले में गिरते वक़्त तो क़तअन मुझे होश नहीं था। जब बाहर निकला तो जो हादिसा वक़ूअ पज़ीर हुआ था, उसके ख़द्द-ओ-ख़ाल आहिस्ता आहिस्ता दिमाग़ में उभरने शुरू हुए।दूर शोर की आवाज़ सुनाई दे रही थी जैसे बहुत से लोग ग़ुस्से में चीख़-चिल्ला रहे हैं। मैं गंदा नाला उबूर करके ज़ाहिरा पीर के तकिए से होता हुआ हाल दरवाज़े के पास पहुंचा तो देखा कि तीस-चालीस नौजवान जोश में भरे पत्थर उठा उठा कर दरवाज़े के घड़ियाल पर मार रहे हैं। उसका शीशा टूट कर सड़क पर गिरा तो एक लड़के ने बाक़ीयों से कहा, “चलो... मलिका का बुत तोड़ें!”
मिर्ज़ा ग़ालिब अपने दोस्त हातिम अली मेहर के नाम एक ख़त में लिखते हैं,“मुग़ल बच्चे भी अजीब होते हैं कि जिस पर मरते हैं उसको मार रखते हैं, मैंने भी अपनी जवानी में एक सितम पेशा डोमनी को मार रखा था।”
मगर बेगम जान से शादी कर के तो वो उन्हें कुल साज़-ओ-सामान के साथ ही घर में रख कर भूल गए और वो बेचारी दुबली पतली नाज़ुक सी बेगम तन्हाई के ग़म में घुलने लगी।न जाने उनकी ज़िंदगी कहाँ से शुरू होती है। वहाँ से जब वो पैदा होने की ग़लती कर चुकी थी, या वहाँ से जब वो एक नवाब बेगम बन कर आईं और छपर-खट पर ज़िंदगी गुज़ारने लगीं। या जब से नवाब साहब के यहाँ लड़कों का ज़ोर बंधा। उनके लिए मुरग़न हलवे और लज़ीज़ खाने जाने लगे और बेगम जान दीवान-ख़ाने के दर्ज़ों में से उन लचकती कमरों वाले लड़कों की चुस्त पिंडलियाँ और मुअत्तर बारीक शबनम के कुरते देख-देख कर अंगारों पर लोटने लगीं।
पुल के जंगले का सहारा लेकर में एक अरसे से उस का इंतेज़ार कर रहा था। सै पहर ख़त्म हो गई। शाम आ गई, झील वलर को जाने वाले हाऊस बोट, पुल की संगलाख़ी मेहराबों के बीच में से गुज़र गए और अब वो उफ़ुक़ की लकीर पर काग़ज़ की नाव की तरह कमज़ोर और बेबस नज़र आ रहे थे। शाम का क़िरमज़ी रंग आसमान के इस किनारे से उस किनारे तक फैलता गया और क़िरमज़ी से सुरमई और सुरमई से सियाह हो...
“बड़ी से बड़ी बात ये होगी कि अंग्रेज़ चला जाएगा और कोई इटली वाला आजाएगा। या वो रूस वाला जिसकी बाबत मैंने सुना है कि बहुत तगड़ा आदमी है। लेकिन हिंदुस्तान सदा ग़ुलाम रहेगा। हाँ, मैं ये कहना भूल ही गया कि पीर ने ये बददुआ भी दी थी कि हिंदुस्तान पर हमेशा बाहर के आदमी राज करते रहेंगे।”उस्ताद मंगू को अंग्रेज़ों से बड़ी नफ़रत थी और उस नफ़रत का सबब तो वो ये बतलाया करता था कि वो हिंदुस्तान पर अपना सिक्का चलाते हैं और तरह तरह के ज़ुल्म ढाते हैं। मगर उसके तनफ़्फ़ुर की सबसे बड़ी वजह ये थी कि छावनी के गोरे उसे बहुत सताया करते थे। वो उसके साथ ऐसा सुलूक करते थे, गोया वो एक ज़लील कुत्ता है।
न जाने किस की ये डाइरी हैन नाम है, न पता है कोई:
“तुम्हारा शख़्सियत से आखिर मतलब क्या है?”मैं तो खुदा से यही चाहता था कि वह मुझे अर्ज़-ओ-मा’रूज़ का मौक़ा दें। मैंने कहा, “देखिए न! मसलन एक तालिब-इ’ल्म है। वह कॉलेज में पढ़ता है। अब एक तो उसका दिमाग़ है। एक उसका जिस्म है। जिस्म की सहत भी ज़रूरी है और दिमाग़ की सहत तो जरूरी है ही, लेकिन उनके अलावा वह एक और बात भी होती है जिससे आदमी गोया पहचाना जाता है। मैं उसको शख़्सियत कहता हूँ। उसका तअ’ल्लुक़ न जिस्म से होता है न दिमाग़ से। हो सकता है कि एक आदमी का जिस्मानी सहत बिल्कुल ख़राब हो लेकिन फिर भी उसकी शख़्सियत... न खैर दिमाग़ तो बेकार नहीं होना चाहिए, वर्ना इन्सान ख़तबी होता है। लेकिन फिर भी अगर हो भी, तो भी... गोया शख़्सियत एक ऐसी चीज़ है... ठहरिए, मैं अभी एक मिनट में आप को बताता हूँ।”
हल्कू ने घुटनों को गर्दन में चिमटाते हुए कहा, “क्यों जबरा जाड़ा लगता है, कहा तो था घर में पियाल पर लेट रह। तू यहाँ क्या लेने आया था! अब खा सर्दी, मैं क्या करूँ। जानता था। मैं हलवा पूरी खाने आ रहा हूँ। दौड़ते हुए आगे चले आए। अब रोओ अपनी नानी के नाम को।” जबरा ने लेटे हुए दुम हिलाई और एक अंगड़ाई लेकर चुप हो गया। शायद वो ये समझ गया था कि उसकी कूँ-कूँ की ...
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books