aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پنپ"
भारत भूषण पन्त
1958 - 2019
शायर
प्रणव मिश्र तेजस
born.1999
पन्ना लाल नूर
पुष्पराज यादव
born.1998
आदित्य पंत नाक़िद
born.1971
पुष्पेंद्र पुष्प
born.1981
सुश्रुत पंत ज़र्रा
अलेक्जंडर पोप
1688 - 1744
सुधीर पंत
लेखक
उमेश पंत
शेर बहादुर ख़ान पन्नी
के सी पंत
संपादक
दीनू भाई पंत
पंज भवन पब्लिकेशंस, भोपाल
पर्काशक
पंच भवन पब्लिकेशन्स, भोपाल
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों सेलौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
दिल कुछ पनप चला था तग़ाफ़ुल की रस्म सेफिर तेरे इल्तिफ़ात ने बीमार कर दिया
न इस क़दर कठोर-पनकि दोस्ती ख़राब हो
पनप सका न ख़याबाँ में लाला-ए-दिल-सोज़कि साज़गार नहीं ये जहान-ए-गंदुम-ओ-जौ
बुढ़िया ने कहा, “मुझे मत उठाओ। मैं यहीं मरूँगी। अपनी बहू बेटियों के दर्मियान। क्या कहा तुमने, चोट। अरे बेटा ये चोट बहुत गहरी है। ये घाव दिल के अंदर ही बहुत गहरा घाव है। तुम लोग इससे कैसे पनप सकोगे? तुम्हें ख़ुदा कैसे माफ़ करेगा?” “हमें माफ़ कर दो...
मिज़ाहिया शायरी बयकवक़्त कई डाइमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तल्ख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इन्सानों के ग़लत रवय्यों पर तंज़ करने का मौक़ा भी। तंज़ और मिज़ाह के पैराए में एक तख़्लीक़-कार वो सब कह जाता है जिसके इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के इन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।
उर्दू शायरी का एक कमाल ये भी है कि इस में बहुत सी ऐसी लफ़्ज़ियात जो ख़ालिस मज़हबी तनाज़ुर से जुड़ी हुई थीं नए रंग और रूप के साथ बरती गई हैं और इस बरताव में उनके साबिक़ा तनाज़ुर की संजीदगी की जगह शगुफ़्तगी, खुलेपन, और ज़रा सी बज़्ला-संजी ने ले ली है। दुआ का लफ़्ज़ भी एक ऐसा ही लफ़्ज़ है। आप इस इन्तिख़ाब में देखेंगे कि किस तरह एक आशिक़ माशूक़ के विसाल की दुआएँ करता है, उस की दुआएँ किस तरह बे-असर हैं। कभी वो इश्क़ से तंग आ कर तर्क-ए-इश्क़ की दुआ करता है लेकिन जब दिल ही न चाहे तो दुआ में असर कहाँ। इस तरह की और बहुत सी पुर-लुत्फ़ सूरतों हमारे इस इन्तिख़ाब में मौजूद हैं।
इश्क़-ओ-मोहब्बत में फ़िराक़, वियोग और जुदाई एक ऐसी कैफ़ियत है जिस में आशिक़-ओ-माशूक़ का चैन-ओ-सुकून छिन जाता है । उर्दू शाइरी के आशिक़-ओ-माशूक़ इस कैफ़ियत में हिज्र के ऐसे तजरबे से गुज़रते हैं, जिस का कोई अंजाम नज़र नहीं आता । बे-चैनी और बे-कली की निरंतरता उनकी क़िस्मत हो जाती है । क्लासिकी उर्दू शाइरी में इस तजरबे को ख़ूब बयान किया गया है । शाइरों ने अपने-अपने तजरबे के पेश-ए-नज़र इस विषय के नए-नए रंग तलाश किए हैं । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को जुदाई के शेरी-इज़हार का अंदाज़ा होगा ।
Pand Nama-e-Attar Mutarjim
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार
मसनवी
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
तन्हाईयाँ कहती हैं
काव्य संग्रह
Pichchle Panne
गुलज़ार
अफ़साना
Panchtantra Ki Kahaniyan
शिव कुमार
बाल-साहित्य
Panj Ganj Malfuzat KHwajgan-e-Chisht Ahl-e-Bahisht
अननोन ऑथर
उपदेश
Aap Beeti Paap Beeti
साक़ी फ़ारुक़ी
जीवनी
Chand Pand
डिप्टी नज़ीर अहमद
पालना पोसना
Panch Tantra Ki Kahaniyan
अनुवाद
Nasihat Nama
Be Chehragi
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
शुमारा नम्बर-002
सय्यद ज़मीर जाफ़री
उर्दु पंच
یہ خیال بھی بودلیئر ہی کا ہے کہ شاعری خود ہی تنقیدی صلاحیت کا اظہار ہوتی ہے۔ ایڈگرایلن پوپر اپنے مضمون میں (جس کا اقتباس میں نے اوپر پیش کیا) بودلیئر نے یہ کہا تھا کہ قوت متخیلہ سے عاری شخص نامکمل عالم ہے۔ اب واگنر (Wagner) کی موسیقی پر...
लाख बंजर हो ज़मीं फिर भी पनप जाएगीआख़िरी शय जो मिरे पास है बोने वाली
किसी ने रूमी टोपी वाले को जवाब न दिया। "वो दिन कब आएगा?" दूर से यूं आवाज़ सुनाई दी जैसे कोई आहें भर रहा हो। "कौन सा दिन बीबी?" कुरते पाजामे वाले ने पूछा।...
नई फ़ज़ा में नई दोस्ती पनप न सकीघरों के बीच पुरानी अदावतें थीं बहुत
میں نے اس زمانے کے مشاعروں میں بعض خاصی بھونڈی نظموں کو صرف اس لئے مقبول ہوتے دیکھا ہے کہ وہ عوام کے جذبات کی ترجمانی ہوتی تھیں۔ قدامت پرست عناصر اسے عوام کی بدمذاقی پر محمول کرتے تھے کہ اب فن کی کوئی قدر باقی نہیں رہ گئی ہے...
شادی کے نو مہینے کے بعد رشیدہ کے ہاں لڑکا پیدا ہوا مگر کس مصیبت سے ہوا یہ نہ پوچھو۔ بچاری کی جان کے لالے پڑ گئے۔ مہینہ بھر تک یہ حال رہا کہ کوئی دن نہ ہوتا ہوگا جو ڈاکٹر اور میمیں نہ آتی ہوں، اور بچاس ساٹھ روپے...
सच्ची समाअतों का ज़माना गुज़र गयानग़्मे पनप रहे हैं असर के बग़ैर भी
डे यूनियन का सदर था, वो दुबला पतला सा बंगाली लड़का था। उस में सिर्फ़ ये ख़ूबी थी कि वो कई साल से यूनीयन का सदर था। मेरी उसकी जान पहचान तब से हुई जब वो हॉस्टल में मेरा पड़ोसी बना। उसकी शायराना बातें, उसके अनोखे नज़रिए, उसका हस्सास पना,...
آسمان میں گشت لگانے والے بادلوں سے نمی نہیں برس سکتی۔ پودے اورجھاڑیاں جو میدانوں کی رونق ہیں پنپ نہیں سکتیں۔...
बहुत रुस्वाइयाँ सह लें दिल-ए-बर्बाद की ख़ातिरमगर उल्फ़त पनप सकती नहीं ऐसा ज़माना है
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