aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "چرنے"
चरण सिंह बशर
born.1957
शायर
शिव चरन दास गोयल ज़ब्त
born.1918
सोज़ बरेलवी
असर देहलवी
1898 - 1978
कालीचरण सिंह
दास चरन सिंह
लेखक
चरनजीत लाल सहगल
बाबू राम चरण लाल
शोबा-ए-उर्दू चौधरी चरण सिंह युनिवर्सिटी, मेरठ
पर्काशक
भगवती चरण वर्मा
1903 - 1981
डा. चरनजीत सिंह सागर
born.1954
बाबू शिव चरन लाल
गिरश चरन मवार
महाराज चरन सिंह
गुरचरन सिंह
जब चलते चलते रस्ते में ये गौन तिरी रह जावेगीइक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने आवेगी
ये कहता हुआ वो उछला और उस अलाव के ऊपर से साफ़ निकल गया पैरों में ज़रा सी लिपट लग गई, पर वो कोई बात न थी। जबरा अलाव के गिर्द घूम कर उसके पास खड़ा हुआ। हल्कू ने कहा चलो-चलो, इसकी सही नहीं। ऊपर से कूद कर आओ वो...
दूसरे दिन झूरी का साला जिसका नाम गया था, झूरी के घर आया और बैलों को दुबारा ले गया। अब के उसने गाड़ी में जोता। शाम को घर पहुँच कर गया ने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और फिर वही ख़ुश्क भूसा डाल दिया। हीरा और मोती इस बरताव...
गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने में कोई एक हफ़्ता होगा जब मैं अम्मी चंद के साथ पहली मर्तबा उसके घर गया। वो गर्मियों की एक झुलसा देने वाली दोपहर थी लेकिन शेख़चिल्ली की कहानियाँ हासिल करने का शौक़ मुझ पर भूत बन कर सवार था और मैं भूक और धूप...
کبھی میں گیا، دیکھا کہ دروازے میں یہ بڑا قفل لٹک رہا ہے، سمجھ گیا کہ مولوی صاحب کہیں چرنے چگنے تشریف لے گئے ہیں۔ میں نے کئی دفعہ پوچھا بھی کہ مولوی صاحب! آپ کے ہاں کچھ پکتا پکاتا نہیں، کہنے لگے، ’’نہیں بھئی، میں نے تو مدتوں سے...
हुस्न अदाओं से ही हुस्न बनता है और यही अदाएं आशिक़ के लिए जान-लेवा होती है। महबूब के देखने मुस्कुराने, चलने, बात करने और ख़ामोश रहने की अदाओं का बयान शायरी का एक अहम हिस्सा है। हाज़िर है अदा शायरी की एक हसीन झलक।
तेवर तो माशूक़ ही पर जचते हैं। माशूक़ का चेहरा तेवरों से ख़ाली हो तो फिर वो माशूक़ का चेहरा ही कहाँ हुआ। लेकिन आशिक़ इन तेवरों को किस तौर पर महसूस करता है। उनसे उस के लिए किस तरह की मुश्किलें पैदा होती हैं इन सब बातों को जानना एक दिल-चस्प तजर्बा होगा। हमारे चुने हुए इन शेरों को पढ़िए।
तख़्लीक़ी ज़हन नास्टेलजाई कैफ़ितों में घिरा होता है वो बार बार अपने माज़ी की तरफ़ लौटता है, उसे कुरेदता है, अपनी बीती हुई ज़िंदगी के अच्छे बुरे लमहों की बाज़ियाफ़्त करता है। आप इन शेरों में देखेंगे कि माज़ी कितनी शिद्दत के साथ ऊद करता है और किस तरीक़े से गुज़री हुई ज़िंदगी हाल के साथ क़दम से क़दम मिला कर चलने लगती है। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़ कर आप अपने माज़ी को एक नए तरीक़े से देखने, बरतने और याद करने के अहल होंगे।
चरनेچرنے
graze
Hindustani Samaj
शयामा चरन दूबे
सांस्कृतिक इतिहास
Taar Par Chalne Wali
मिर्ज़ा हामिद बेग
अफ़साना
Santon Ki Bani
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Chitr Lekha
Mahatma Tolstoy Ki Kahani Khud Usi Ki Zabani
जीवनी
Sant Samwad
Sant Marg
Sant Mat Darshan
Chikne Chikne Paat
मार्क टोयन
अनुवाद
Hindustani Gaun
मेरी अदबी अाप बीती
डॉ. चरण दास सिद्धू
आत्मकथा
Phool Kuchh Maine Chune Hain
सय्यद शाह नूरुल्लाह क़ादरी नक़्शबंदी
Namood-e-Saher
मीर ज़फ़र ज़ैदी
इतिहास
तन्क़ीद-ओ-तब्सिरह
तारा चरण रस्तोगी
आलोचना
खाने के बाद रहमान ने अपनी उंगलियाँ पगड़ी के शिमले से पोंछीं और उठ खड़ा हुआ। किसी नीम शऊरी एहसास से उसने अपने जूते उठाए और उन्हें दालान में एक दूसरे से अच्छी तरह अलैहदा अलैहदा कर के डाल दिया। लेकिन इस सफ़र से छुटकारा नहीं था। हरचंद कि अपनी...
کسی نے خدا کو اور کسی طرح نہیں جانا۔ اگر جانا تو نیچر ہی سے جانا۔ موسیٰ نے ربّ ارنی کے جواب میں کیا سنا۔ لن ترانی ولکن انظر الی الجبل، پہاڑ پر کیا تھا؟ وہی نیچر قانون قدرت کا نمونہ تھا۔ خود خدا بھی اپنے آپ کو کچھ نہیں...
بادشاہ اور پہلوان بھی ایرانیوں نے اپنے وطن کی تاریخ ہی سے لیے۔ یہی جدید ایرانی ادب جو نہ عربی ادب ہے نہ ایرانی ادب، بلکہ ایک نئے نام عربیرانی کہلانے کا مستحق ہے، ہندوستان کے مغربی حملہ آوروں کے ذریعہ سے ہندوستان پہنچا۔ غزنوی، غوری، تغلق، خلجی، سادات، لودھی،...
उन ही के बड़े भाई, ड्राइंग रुम के अदीब कहलाते हैं। ये पूरे अदब को उसी नज़र से देखते हैं, गोया अपने मातहतों को झिड़क रहे हों। कोई उनकी नज़र में समाता ही नहीं। उनकी ज़ाती लाइब्रेरी शहर और यूनीवर्सिटी की बड़ी से बड़ी लाइब्रेरियों का मुक़ाबला करती है। जिसमें...
गाएँ दूब को चरने आईंभैंसों ने अपनी शक्लें दिखाईं
उस का बर्फ़ सा चरने मन मेंइक अनजानी आग लगाए
آتما سنگھ: کمار۔۔۔کمار۔۔۔ وہی ہوا جس کا کھٹکا تھا تم نے اس نالائق بیدی کا کہا مان ہی لیا بھلا وہ جاہل ڈاکٹر کیا جانے۔۔۔۔۔۔میری اور اس کی راستے میں بحث بھی ہوئی! اب بھاگا بھاگا یہاں آرہا ہوں اور یہ دیکھتا ہوں کہ تم ناک میں پاؤ بھر نسوار...
इक दिन सारी धरती को खा जाएँगेघास के पीछे मिट्टी चरने वाले लोग
मेरे चारों जानिब ऊँची ऊँची घासमेरे चारों जानिब चरने वाले लोग
یہ اس زمانے کا ذکر ہے کہ جب علامہ راشدالخیری ابھی زندہ تھےاور رسالہ’’عصمت‘‘ ہر مہینے باقاعدگی سے احسان منزل میں پہنچتا تھا۔ ’’عصمت‘‘ کی خریداری بھی دراصل احسان منزل کی تاریخ کا بہت اہم واقعہ ہے، یہ پرچہ جب پہلی مرتبہ احسان منزل میں پہنچا تو سارے محلہ میں...
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