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नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
जिनाँ में साथ अपने क्यूँ न ले जाऊँगा नासेह को
सुलूक ऐसा ही मेरे साथ है हज़रत ने कर रक्खा
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
रूह निकल कर बाग़-ए-जहाँ से बाग़-ए-जिनाँ में जा पहुँचे
चेहरे पे अपने मेरी निगाहें इतनी देर तो रहने दो
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
नज़्म
एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए
बैरूत निगार-ए-बज़्म-ए-जहाँ
बैरूत बदील-ए-बाग़-ए-जिनाँ