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नज़्म
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शान आँखों में न जचती थी जहाँ-दारों की
कलमा पढ़ते थे हमीं छाँव में तलवारों की
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
अफ़्सुर्दगी ओ ज़ोफ़ की कुछ हद नहीं 'अकबर'
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जौन एलिया
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए