aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "राहगीर"
राही मासूम रज़ा
1927 - 1992
लेखक
दिवाकर राही
1914 - 1968
शायर
सईद राही
अहमद राही
1923 - 2002
आदिल राही
born.1993
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
born.1937
जमुना प्रसाद राही
राकेश राही
born.1969
राहील फ़ारूक़
born.1986
मिर्ज़ा राहील
born.1998
राही फ़िदाई
born.1949
मुसतफ़ा राही
1931 - 1986
अमित झा राही
born.1989
महबूब राही
born.1939
राही शहाबी
1934 - 2005
शाम को जब मैं मुल्ला जी से सीपारे का सबक़ लेकर लौटता तो ख़र्रासियों वाली गली से होकर अपने घर जाया करता। उस गली में तरह तरह के लोग बस्ते थे। मगर मैं सिर्फ़ मोटे माशकी से वाक़िफ़ था जिसको हम सब, "कद्दू करेला ढाई आने" कहते थे। माशकी के...
तीन नौजवान ऐंग्लो इंडियन लड़कियाँ उन तस्वीरों को ज़ौक़-व-शौक़ से देख रही थीं। एक ख़ास शान-ए-इस्ति़ग़ना के साथ मगर सिन्फ़-ए-नाज़ुक का पूरा पूरा एहतिराम मल्हूज़ रखते हुए वो भी उनके साथ साथ मगर मुनासिब फ़ासले से उन तस्वीरों को देखता रहा। लड़कियाँ आपस में हंसी मज़ाक़ की बातें भी करती...
सब अमीर-ओ-फ़क़ीर रोते थेदेख कर राह-गीर रोते थे
बात उन्हें बहुत बुरी लगी। इसलिए मुझे यक़ीन हो गया कि सच थी। उसके बाद ताल्लुक़ात इतने कशीदा हो गए कि हमने एक दूसरे के लतीफों पर हँसना छोड़ दिया। इस्तिआरा-ओ-किनाया बरतरफ़, मेरा अपना अक़ीदा तो ये है कि जब तक आदमी को ख़वास की ग़िज़ा मिलती रहे, उसे ग़िज़ा...
बर्र-ए-सग़ीर में चंद इलाक़े ऐसे भी हैं जहां अगर चारपाई को आसमान की तरफ़ पायँती करके खड़ा कर दिया जाये तो हमसाये ताज़ियत को आने लगते हैं। सोग की ये अलामत बहुत पुरानी है, गो कि दीगर इलाक़ों में ये अमूदी (|) नहीं, उफु़क़ी (-) होती है। अब भी गुनजान...
राहगीरراہگیر
a traveller, a wayfarer
बटोही, पथिक, मुसाफ़िर।
Aadha Gaon
ऐतिहासिक
Jaan-e-Ghazal
बाल स्वरुप राही
Ghreeb-e-shahr
काव्य संग्रह
Asan Karate
अज़हर हुसैन राही
एजुकेशन / शिक्षण
Hypnotism Ke Amali Tareeqe
ख़्वाजा हैदर अली आतिश लखनवी
शोएब राही
शोध
अजनबी शहर अजनबी रास्ते
Nooruddin Zangi
असलम राही
Phool Ke Aansu
अज़ीम राही
अफ़साना
Andheron Ke Sarban
Helen of Troy
Jahangeer Wa Noor Jahan
एक लम्हा
Khuda Kahan Hai
नॉवेल / उपन्यास
Baba-e-Urdu Maulvi Abdul Haq
मोहम्मद रज़ी राही
जीवनी
लेकिन आज ये बड़ी हिम्मत का काम है। ग़ैरों के नाविक-ए-दुशनाम। अपनों की तर्ज़-ए-मलामत। ता'ने तिशने कानाफूसी और रुसवाई सर-ए-बाज़ार... इश्क़ से पहले आशिक़ का ख़ात्मा यक़ीनी! उम्र-ए-रफ़्ता के महबूब इस क़दर क़त्ल-ओ-ग़ारत और फ़ित्ना-ओ-शर बरपा करने के बावजूद भी बेचारे बुरे-भले और ख़ुदातरस बंदे हुआ करते थे। घर हमेशा...
इस वक़्त बेगम तुराब अली की तेज़ नज़रों के सामने माली का हाथ बड़ी फुर्ती से चल रहा था। उसने पौदों और छोटे छोटे पेड़ों की काट छांट तो क़ैंची से खड़े खड़े ही कर डाली थी और अब वो ऊंचे ऊंचे दरख़्तों पर चढ़ कर बेगम साहिब की हिदायत...
“अब? अब कहीं और जाऊँगा। कहीं ना कहीं से कोई माल मिल ही जाएगा।” सरदार सिंह क़ौमी कारकुन हैं। जेल जा चुके हैं। जुर्माने अदा कर चुके हैं। सयासी आज़ादी के हुसूल के लिए क़ुर्बानियाँ दे चुके हैं। ये वाक़िया सुना कर सुंदर सिंह ने कहा। बदमाशी-ओ-बर्बादी इस हद तक...
इस दौर के मुल्ला हैं क्यों नंग-ए-मुसलमानी? ऐसे ग़ैज़ वग़ज़ब की फ़िज़ा में भी आज तक कहीं आर्ट पनपा है? आर्ट के लिए तो ज़ब्त और नसक़ और इस्तिहकाम और अख़लाक़ और फ़रोग़ लाज़िम हैं या फिर कोई वलवला कोई उमंग कोई इश्क़ जो दिलों के दरवाज़े खोल दे और...
रूदाबा: कार्टर रोड... गुलचहर: जी नहीं... अलीमाला रोड... टैक्सी वाला सारी पाली हिल पर लिए फिरा। होटल में किसी ने हमें बताया था कि ये जगह दिलीप कुमार के बुंगे के नज़दीक होगी... एक राहगीर बोला राजेश खन्ना के बुंगे के आगे दाएँ हाथ को जो सड़क जाती है। मैंने...
घर से निकल कर जब वो सरीन मुहल्ले के मास्टर तारा सिंह चौक पर पहुँचे तो बिजली की रौशनियाँ बुझ गईं, और एक हैबत-नाक और मौत के तसव्वुर से ज़ियादा गहरा अँधेरा छा गया और जाने किस गली के मोड़ पर मुहल्ले का चौकीदार अपनी करख़्त, सख़्त और दहला देने...
“तुम नहीं मानेगा बुड्ढा अंकल, जाएगा।” साहिब मुस्कुराने लगा। “तो जाओ पर होशयारी से अपने आपको बचा कर...” फिर बुड्ढे अंकल ने साहिब को झुक कर सलाम किया और हस्ब-ए-दस्तूर इ’लाक़े के हर राहगीर को गुड मॉर्निंग करता, जब चर्च के सामने पहुंचा तो उसने आहिस्ता से झुक कर सर...
“हाँ भई, तो कल हड़ताल हो रही है क्या?” तीसरे ने एक की पसलियों में कोहनी से टहोका दिया। उस ने जवाब दिया, “क्यों न होगी, अरे इतना बड़ा मुसलमान मर जाये और हड़ताल न हो।” ये बात एक राहगीर ने सुन ली, उसने दूसरे चौक में अपने दोस्तों से...
मैंने देखा कि इस फार्मूले से मिर्ज़ा ने बारहा एक दिन में दस-दस पंद्रह-पंद्रह रुपये बचाए। एक रोज़ दस रुपये की बचत दिखा कर उन्होंने मुझसे पांच रुपये उधार मांगे तो मैंने कहा, “ग़ज़ब है दिन में दस रुपये बचाने के बावजूद मुझसे पांच रुपये क़र्ज़ मांग रहे हो?” कहने...
चराग़-ए-मंज़िल-ए-फ़र्दा जलाएगा इक रोज़वो राहगीर जो तन्हा दिखाई देता है
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