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नज़्म
बंजारा-नामा
ऐ ग़ाफ़िल तुझ से भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिस्री क़ंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है
नज़ीर अकबराबादी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
दार-उल-मकाफ़ात
जो मिस्री और के मुँह में दे फिर वो भी शक्कर खाता है
जो और तईं अब टक्कर दे फिर वो भी टक्कर खाता है