aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ग़म बिजनौरी
लेखक
मीम एैन ग़म
जी.एम. सय्यद स्टडीज बोर्ड कराची
पर्काशक
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या हैतेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
ग़म हमारी ज़िंदगी का एक अनिवार्य रंग है और इस को कई तरह से स्थायित्व हासिल है । हालाँकि ख़ुशी भी हमारी ज़िंदगी का ही एक रंग है लेकिन इस को उस तरह से स्थायित्व हासिल नहीं है । उर्दू शायरी में ग़म-ए-दौराँ, ग़म-ए-जानाँ, ग़म-ए-इश्क़, गम-ए-रोज़गार जैसे शब्द-संरचना या मिश्रित शब्द-संरचना का प्रयोग अधिक होता है । उर्दू शायरी का ये रूप वास्तव में ज़िंदगी का एक दुखद वर्णन है । विरह या जुदाई सिर्फ़ आशिक़ का अपने माशूक़ से भौतिक-सुख या शारीरिक स्पर्श का न होना ही नहीं बल्कि इंसान की बद-नसीबी महरूमी का रूपक है हमारा यह चयन ग़म और दुख के व्यापक क्षेत्र की एक सैर है।
Aab-e-Gum
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
गद्य/नस्र
Tabassum-e-Gum
वसीम बरेलवी
काव्य संग्रह
Mohabbat Mustaqil Gham Hai
वसी शाह
संकलन
Naujawan Warther Ki Dastan-e-Gham
जॉन वुल्फगांग गेटे
नॉवेल / उपन्यास
Gham-e-Javedan
क़मर जलालवी
Safeena-e-Gham-e-Dil
क़ुर्रतुलऐन हैदर
नीतिपरक
ग़म-ए-दिल वहशत-ए-दिल
मोहम्मद हसन
जीवनीपरक
Duniya Bhar ke Gham The
श्याम सख़ा श्याम
ग़ज़ल
Dhal Gai Sham Gham
अतीया परवीन बिलग्रामी
महिलाओं की रचनाएँ
गुलज़ार-ए-ग़म
सय्यद हुसैन मिर्ज़ा लख़नवी
मर्सिया
Shakh-e-Nihal-e-Gham
इशरत ज़फ़र
मज़ामीन / लेख
Isharat-e-Gham
नज्म आफ़न्दी
Manto Ke Gum Shuda Aur Ghair Matbua Afsane
सआदत हसन मंटो
अफ़साना
Aashiyan Gum Karda
अशफ़ाक़ हुसैन
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना होहक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
जो अहद ही कोई न होतो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिलामंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाजशम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँअब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सहीतुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले
जब मैं तुम्हें नशात-ए-मोहब्बत न दे सकाग़म में कभी सुकून-ए-रिफ़ाक़त न दे सका
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैंज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेहकोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
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