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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
नज़्म
कनीज़
हुज़ूर आप की नज़र में नींद का ख़ुमार है
हुज़ूर शायद आज दुश्मनों को कुछ बुख़ार है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
न मैं तंदुरुस्त होता न कभी स्कूल जाता
कभी सर में दर्द रहता तो कभी बुख़ार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
समस्त
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नज़्म
माँ तिरे जाने के बा'द
कौन पोंछेगा मिरे बहते हुए अश्कों की धार
कौन पानी पढ़ के देगा होगा जब मुझ को बुख़ार