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ग़ज़ल
हुस्न-ए-बुताँ में शान-ए-इलाही है क्या कहूँ
बैठे न बुत-कदे में फ़िदाई तो क्या करे
जमीला ख़ुदा बख़्श
नज़्म
बचपने की याद
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता तू ने की मुझ से बे-वफाई
आ जा पलट के दम भर मैं हूँ तिरा फ़िदाई