aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "fresh"
जोर्ज पेश शोर
1823 - 1894
शायर
रऊफ़ पारेख
born.1958
लेखक
सिग्मुंड फ़्रोइड
रॉबर्ट फ़्रॉस्ट
1874 - 1963
चार्ल्स डिकेंस
1812 - 1870
उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी, लखनऊ
पर्काशक
अख़्तर डेक्कन प्रेस अफ़ज़लगंज, हैदराबाद
अोक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस
बेमहमूद प्रेस फ़िल मदरसतिन निज़ामीया बेबलदत-ए-हैदराबाद
निज़ाम-ए-दकन प्रेस, हैदराबाद
अबुल उलाई प्रेस, आगरा
इदारा-ए-तहक़ीक-ए-मख़तूतात-ए-मशरिक़ी, आन्ध्र प्रदेश
पंजाब प्रेस, सिआलकोट
नामी प्रेस, लखनऊ
निज़ामी प्रेस, लखनऊ
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत हैसो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
कह दिया केफ्रेश हो जाओ
निकली हो पार्लर से फिरेश फ़ेस ले के तुमलगता हूँ मैं जो काली-चरण तुम को इस से क्या
है उसे दूर का सफ़र दर-पेशहम सँभाले नहीं सँभलते हैं
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों सेतुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
चाँद उर्दू शाएरी का एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।
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फ्रेशفریش
fresh
फ़रोशفروش
seller
फ़राशفراش
spreading; strewing; a thing that is spread
a servant whose business it is to spread carpets; make beds etc.; bedmaker; chamberlain
फ़र्शفرش
floor, carpet, mattress
बिछाने की चीज़, ज़मीन
Urdu Nasr Mein Mizah Nigari Ka Siyasi Aur Samaji Pas-Manzar
आलोचना
Manto Ke Fahesh Afsane
सआदत हसन मंटो
अफ़साना
Tahleel-e-Nafsi Ka Ijmali Khaka
मनोविज्ञान
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दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
Freud Aur Uski Talimaat
स. ए. क़ादिर
Pesh-Goyi
शाह नेमतुल्लाह वली
Nostradamus ki Sacchi Aur Hairat Angez Pesh Goiyan
प्रवाना रुदौलवी
ज्योतिष
Maasir-e-Adab Ke Pesh Rau
मोहम्मद हसन
Freud Ka Nazariya-e-Jins
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Ma'asir Adab Ke Pesh Rau
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बाल-साहित्य
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शब्द-कोश
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जोश मलीहाबादी
काव्य संग्रह
Uttar Pardesh Ke Urdu Shora
हयात वारसी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
मुफ़्त मश्वरा
अब है बस अपना सामना दर-पेशहर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिएअपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
फ़र्श पर काग़ज़ उड़ते फिरते हैंमेज़ पर गर्द जमती जाती है
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँकुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ
तन्हा न कट सकेंगे जवानी के रास्तेपेश आएगी किसी की ज़रूरत कभी कभी
आ चुका पेश वो मुरव्वत सेअब चलूँ काम हो चुका मेरा
मुझ पे अब फ़ाश हुआ राज़-ए-हयातज़ीस्त अब से तिरी चाहत है मुझे
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमलआप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँवो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
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