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चाँद पर शेर

चाँद उर्दू शाएरी का

एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।

फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब

सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

रात के शायद एक बजे हैं

सोता होगा मेरा चाँद

परवीन शाकिर

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है

अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है

फ़रहत एहसास

ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही हो

अँधियारी रात में कोई महताब ही हो

ख़लील मामून

काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम जाए

इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है

इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है

ख़ावर एजाज़

चाँद निकला है ब-अंदाज़-ए-दिगर आज की शाम

बारिश-ए-नूर है ता-हद्द-ए-नज़र आज की शाम

अरमान अकबराबादी

चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे

आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका

सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा

बशीर बद्र

फूल गुल शम्स क़मर सारे ही थे

पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत

मीर तक़ी मीर

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम

रात इक शख़्स बहुत याद आया

जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

उसी की शक्ल मुझे चाँद में नज़र आए

वो माह-रुख़ जो लब-ए-बाम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं

अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो

इब्न-ए-इंशा

हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल

हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

मह-जबीं ईद में अंगुश्त-नुमा क्यूँ रहें

ईद का चाँद ही अंगुश्त-नुमा होता है

सफ़ी औरंगाबादी

हर एक रात को महताब देखने के लिए

मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए

अज़हर इनायती

ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है

बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

सुनी अँधेरों की सुगबुगाहट तो शाम यादों की कहकशाँ से

छुपे हुए माहताब निकले बुझे हुए आफ़्ताब निकले

अक़ील नोमानी

मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब

देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है

अहमद कमाल परवाज़ी

शाख़ पर शब की लगे इस चाँद में है धूप जो

वो मिरी आँखों की है सो वो समर मेरा भी है

स्वप्निल तिवारी

क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है

अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है

निसार कुबरा अज़ीमाबादी

मुझे ये ज़िद है कभी चाँद को असीर करूँ

सो अब के झील में इक दाएरा बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

बेचैन इस क़दर था कि सोया रात भर

पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर

अज्ञात

पूछना चाँद का पता 'आज़र'

जब अकेले में रात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'

कि मेरे बा'द सितारे कहेंगे अफ़्साने

क़मर जलालवी

चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं

हम ने भी उस से कोई बात की

महमूद अयाज़

आलम है तिरे परतव-ए-रुख़ से ये हमारा

हैरत से हमें शम्स-ओ-क़मर देख रहे हैं

मेला राम वफ़ा

हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा

चाँद के साथ चलोगे कब तक

शोहरत बुख़ारी

दूर के चाँद को ढूँडो किसी आँचल में

ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला

निदा फ़ाज़ली

मेरी तरह से ये भी सताया हुआ है क्या

क्यूँ इतने दाग़ दिखते हैं महताब में अभी

ख़लील मामून

हर रंग है तेरे आगे फीका

महताब है फूल चाँदनी का

जलील मानिकपूरी

पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर

इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी

सरवत हुसैन

चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है

चाँद पर चाँदनी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए

तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए

बशीर बद्र

इतने घने बादल के पीछे

कितना तन्हा होगा चाँद

परवीन शाकिर

चाँद में तू नज़र आया था मुझे

मैं ने महताब नहीं देखा था

अब्दुर्रहमान मोमिन

वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा

तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं

फ़रहत एहसास

आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद

सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला

हैदर अली आतिश

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है

चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं

चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

गुलज़ार

वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू

अँधेरे में सभी महताब से हैं

अख़तर शाहजहाँपुरी

बारिश के बा'द रात सड़क आइना सी थी

इक पाँव पानियों पे पड़ा चाँद हिल गया

ख़्वाजा हसन असकरी

तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में

आसमाँ के बदन पर कोई घाव है

त्रिपुरारि

देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल

वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है

अज्ञात

चाँद में तू नज़र आया था मुझे

मैं ने महताब नहीं देखा था

अब्दुर्रहमान मोमिन

हर रंग है तेरे आगे फीका

महताब है फूल चाँदनी का

जलील मानिकपूरी

नय्या बाँधो नदी किनारे सखी

चाँद बैराग रात त्याग लगे

नासिर शहज़ाद

लुत्फ़-ए-शब-ए-मह दिल उस दम मुझे हासिल हो

इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

फूल बाहर है कि अंदर है मिरे सीने में

चाँद रौशन है कि मैं आप ही ताबिंदा हूँ

अहमद शनास

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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