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नज़्म
शिकवा
नाले बुलबुल के सुनूँ और हमा-तन गोश रहूँ
हम-नवा मैं भी कोई गुल हूँ कि ख़ामोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
आलिम-ए-कैफ़ है दाना-ए-रुमूज़-ए-कम है
हाँ मगर इज्ज़ के असरार से ना-महरम है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
मुझ से पहले
मुझ से पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा उस ने
शायद अब भी तिरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
नज़्म
फ़र्ज़ करो
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ताज-महल
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी