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नज़्म
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
अपने अपने कुँवें को बहर-ए-आज़म कहने और समझने वाले
ये नन्हे मेंडक
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
कहाँ अंधे कुँवें हैं उन को भरता जा रहा था
कहाँ रस्ते ही रस्ते हैं बताता जा रहा था
इक़तिदार जावेद
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
बात ये है कि सुकून-ए-दिल-ए-वहशी का मक़ाम
कुंज-ए-ज़िंदाँ भी नहीं वुसअ'त-ए-सहरा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर