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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाक
अदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नूर-जहाँ के मज़ार पर
कैसे इक फ़र्द के होंटों की ज़रा सी जुम्बिश
सर्द कर सकती थी बे-लौस वफ़ाओं के चराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिण्डोला
तख़य्युलात की दोशीज़गी का रद्द-ए-अमल
जवान हो के भी बे-लौस तिफ़ल-वश जज़्बात
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
अंदाज़-ए-मोहब्बत
मैं ने बे-लौस तिरे साथ मोहब्बत की है
बे-ग़रज़ मैं ने तह-ए-दिल से तुझे चाहा है
अरसलान अब्बास
हास्य
अपनी बे-लौस मोहब्बत की दिखा दे तासीर
आ के धोबी है खड़ा उस का उधारा दे दे
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
दोनों पर बे-लौस मोहब्बत की इक छतरी काफ़ी थी
तुम ने सर पर क्या ताना है दोहरे तिहरे मतलब का
हमीदा शाहीन
नज़्म
ज़िक्र-ए-गाँधी
हर शख़्स सर-निगूँ है बड़े एहतिराम से
'आदिल' ये क़द्र होती है बे-लौस काम से
आदिल जाफ़री
ग़ज़ल
करम मौला करे तो आदमी बे-लौस होता है
न हो उस की अगर रहमत तो ये ताक़त नहीं मिलती