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नज़्म
मैं हूँ क्या वैश्या
नहीं नहीं गलती उन की नहीं उन्होंने तो पढ़ाना चाहा था
पर क्या करें मालकिन को ये बिल्कुल नागवार था
अंकिता गर्ग
ग़ज़ल
यद-ए-बैज़ा की तू है मालकिन ऐ सफ़ेद संग की मूर्ती
तिरी आँख दरिया-ए-नील है मिरी रात कोई निकाल भी
तनवीर मोनिस
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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है
महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
मकाँ फ़ानी मकीं फ़ानी अज़ल तेरा अबद तेरा
ख़ुदा का आख़िरी पैग़ाम है तू जावेदाँ तू है