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नज़्म
मेरी होली
शाइ'र-ओ-सन्नाअ' हो फ़िक्र-ओ-ख़लिश से बे-नियाज़
ख़्वाजा-ओ-मज़दूर में बाक़ी न हो कुछ इम्तियाज़
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर सिद्दीक़ी
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ग़ज़ल
वो लतीफा-गोई उस की वो फ़साहत और बलाग़त
नहीं इस क़दर कि बोले कोई शायर-ओ-सख़नदां
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वाली-ए-शहर नग़्मों का क़ातिल बजा पर हमें ग़म है क्या
फ़िक्र ज़िंदा हो जब तक मिरे शाइरो आस मरती नहीं
सीमाब ज़फ़र
नज़्म
बन-बास
मेरा ये जुर्म कि मैं साहिब-ए-इदराक-ओ-शु’ऊर
मेरा ये 'ऐब कि इक शा'इर-ओ-फ़नकार हूँ मैं