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शेर
अल्लाह-रे भुलापा मुँह धो के ख़ुद वो बोले
सूँघो तो हो गया ये पानी गुलाब क्यूँकर
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
अल्लाह-रे भुलापा मुँह धो के ख़ुद वो बोले
''सूँघो तो हो गया ये पानी गुलाब क्यूँकर''
जुरअत क़लंदर बख़्श
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ग़ज़ल
अपने मन की आशाओं के फूल पिरोना काम मिरा
मा'नी की ख़ुशबू तुम सूँघो शब्दों की मालाओं में
सबा इकराम
ग़ज़ल
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी संग-ए-दुश्नाम भी