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हिंदी ग़ज़ल
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला
मेरे स्वागत को हर इक जेब से ख़ंजर निकला
गोपालदास नीरज
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ग़ज़ल
आने वाले कल का स्वागत कैसे होगा कौन करेगा
जलते हुए सूरज की किरनें सर पर होंगी तब सोचेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मोहब्बत के इस बे-कराँ सफ़र में
औरत में हो गर ख़ुद-ए'तिमादी
दुशासन द्रौपदी की स्वागत को आए
परवेज़ शहरयार
नज़्म
शहर में
रास्ते भर हमारा स्वागत करें
कौन जाने कि आहट से डरती हुई फड़फड़ाती हुई फ़ाख़ताएँ