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ग़ज़ल
मेरे अश्क-ए-शौक़-ए-पैहम में थी उस की दास्ताँ
उस के अंदाज़-ए-तबस्सुम में मिरा अफ़्साना था
बिस्मिल सईदी
हास्य
तू हिफ़्ज़-ए-मा-तक़द्दुम और इत्मीनान की ख़ातिर
पकड़ कर मेज़बाँ को पूछ ले आख़िर पका क्या है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
क़ैस को फ़ज़्ल-ए-तक़द्दुम है वगरना याँ क्या
सर-ए-शोरीदा नहीं या जिगर-ए-चाक नहीं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल कहने को कहते हो तो कब तुम मुझ को
हाए जिस वक़्त नहीं ताब-ए-तकल्लुम मुझ को
दत्तात्रिया कैफ़ी
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हास्य
तू हिफ़्ज़-ए-मा-तक़द्दुम और इत्मीनान की ख़ातिर
पकड़ कर मेज़बाँ को पूछ ले आख़िर पका क्या है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
है हिफ़्ज़-ए-मा-तक़द्दुम क्या 'इश्क़ का बताते
मुझ को हुआ था लाहक़ ये मर्ज़-ए-ला-दवा जब
डॉ. हबीबुर्रहमान
नज़्म
शिकवा
एक बुलबुल है कि महव-ए-तरन्नुम अब तक
उस के सीने में है नग़्मों का तलातुम अब तक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद
ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद
अल्लामा इक़बाल
शेर
तसद्दुक़ इस करम के मैं कभी तन्हा नहीं रहता
कि जिस दिन तुम नहीं आते तुम्हारी याद आती है