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नज़्म
गुरेज़
मैं ज़िंदगी के हक़ाएक़ से भाग आया था
कि मुझ को ख़ुद में छुपाए तिरी फ़ुसूँ-ज़ाई
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
तिरी यादों के चराग़ों में ये जलती हुई रात
मिरी आँखों से छलकती रही ढलती हुई रात
याह्या ख़ान यूसुफ़ ज़ई
ग़ज़ल
ये किस करनी का फल होगा कैसी रुत में जागे हम
तेज़ नुकीली तलवारों के बीच में कच्चे धागे हम