aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "چھت"
दायरह प्रास छत्ता बाजार
पर्काशक
मोहन लाल छा
एश प्रेम धर चित
लेखक
चिस्तया प्रेस छत्ता बाज़ार
मककी प्रेस, छत्ता बाज़ार
ख़ु्र्शीद प्रेस छत्ता बाज़ार, हैदराबाद
अनवर प्रेस छत्ता बाजार, हैदराबाद
दारु-उल-इस्लाम शमस प्रेस, छत्ता बाजार
लाला चेत राम
मतबा फिदाई दकन छत्ता बाजार
चित्तापरिया राॅय
मूलशंकर झा
वो तिरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गईंदिल-ए-बे-ख़बर मिरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगेचाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के
कुलवंत कौर भन्ना गई, “ये भी कोई माँ या जवाब है?”ईशर सिंह ने कृपान एक तरफ़ फेंक दी और पलंग पर लेट गया। ऐसा मालूम होता था कि वो कई दिनों का बीमार है। कुलवंत कौर ने पलंग की तरफ़ देखा, जो अब ईशर सिंह से लबालब भरा था। उसके दिल में हमदर्दी का जज़्बा पैदा हो गया। चुनांचे उसके माथे पर हाथ रख कर उसने बड़े प्यार से पूछा, “जानी क्या हुआ है तुम्हें?”
वो हैअत-दाँ वो आलिम नाफ़-ए-शब में छत पे जाता थारसद का रिश्ता सय्यारों से रखता था निभाता था
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जानेकिस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
इश्क़-ओ-मोहब्बत में फ़िराक़, वियोग और जुदाई एक ऐसी कैफ़ियत है जिस में आशिक़-ओ-माशूक़ का चैन-ओ-सुकून छिन जाता है । उर्दू शाइरी के आशिक़-ओ-माशूक़ इस कैफ़ियत में हिज्र के ऐसे तजरबे से गुज़रते हैं, जिस का कोई अंजाम नज़र नहीं आता । बे-चैनी और बे-कली की निरंतरता उनकी क़िस्मत हो जाती है । क्लासिकी उर्दू शाइरी में इस तजरबे को ख़ूब बयान किया गया है । शाइरों ने अपने-अपने तजरबे के पेश-ए-नज़र इस विषय के नए-नए रंग तलाश किए हैं । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को जुदाई के शेरी-इज़हार का अंदाज़ा होगा ।
उम्र का वह हिस्सा जो उमंगों, आरज़ुओं और रंगीनियों से भरा होता है, जवानी है। जज़्बों की आंच से चट्टानों को भी पिघला देने का यक़ीन इस उम्र में सब से ज़ियादा होता है। चाहने और चाहे जाने के ख़्वाबों में डूबे रहने की यह उम्र शायरी के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं। इस उम्र का नशा किस शायर के कलाम में नहीं मिलता जवानी शायरी पूरे हुस्न और शबाब के साथ आपकी निगाह-ए-करम की मुन्तज़िर हैः
गुज़रे हुए दिनों को याद करके छा जाने वाली उदासी कुछ मीठी सी होती। उस का ज़ायक़ा तो आपने चखा ही होगा। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए जो हम में से हर शख़्स के माज़ी की बा-ज़दीद करता है और गुज़रे हुए लम्हों की यादों को ज़िंदा करता है।
छतچھت
Roof
Tareekh-e-Mashaikh-e-Chisht
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
1980इतिहास
Tooti Chhat Ka Makan
एम मोबीन
2000अफ़साना
Panj Ganj Malfuzat KHwajgan-e-Chisht Ahl-e-Bahisht
अननोन ऑथर
1901उपदेश
Chhe Rangin Darwaze
मुनीर नियाज़ी
काव्य संग्रह
Chhe Sau Baras Pahle Ka Hindustan
मक़बूल अहमद सिवहारवी
1953सांस्कृतिक इतिहास
Majmua-e-Malfoozat-e-Khwajagan-e-Chisht Urdu
ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया
1906उपदेश
Bina Chhat Ke Ghar
कश्मीरी लाल ज़ाकिर
1996नॉवेल / उपन्यास
रामचरितमानस
तुलसी दास
महा-काव्य
Tareekh-e-Iblagh-e-Chisht
एहतिशामुद्दीन फ़रीदी
1992इतिहास
Tarikh-e-Mashayekh Chisht
1953
ख़्वाजगान-ए-चिश्त गुजरात
मोहम्मद फ़ज़लुल मतीन चिश्ती
2004तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Nawa-e-Sarosh
जमील अख़्तर
2001इंटरव्यू / साक्षात्कार
एक कहानी छे अदीबों की ज़बानी
सादिक़ुल ख़ैरी
1944अफ़साना
Kamyabi Sirf Chhe Qadam Par
दिनेश वोहरा
2012महिलाओं की रचनाएँ
पाकिस्तान और छूत
चाैधरी अफ़ज़ल हक़
अन्य
मिरा क़लम नहीं औज़ार उस नक़ब-ज़न काजो अपने घर की ही छत में शिगाफ़ डालता है
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों सेख़्वाब आ आ के मिरी छत पे टहलते क्यूँ हैं
कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़लमैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए
सोचता हूँ तो कहानी की तरह लगता हैरास्ते से मिरा तकना तिरा छत पर होना
और अगर वो उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वो उनको अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदेती थी। वो हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वो उनसे कहती, “साहिब, तुम एक दम उल्लु का पट्ठा है। हरामज़ादा है... समझा।” ये कहते वक़्त वो अपने लहजे में सख़्ती पैदा न करती बल्कि बड़े प्यार के साथ उनसे बातें करती। ये गोरे हंस देते और हंसते वक़्त वो सुल्ताना को बिल्कुल...
छत से उस की धूप के नेज़े आते हैंजब आँगन में छाँव हमारी रहती है
चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ परछत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो
आधी रात की चुप में किस की चाप उभरती हैछत पे कौन आता है सीढ़ियाँ नहीं खुलतीं
कश्ती ख़ूबानी के एक पेड़ से बंधी थी। जो बिलकुल झील के किनारे उगा था। यहां पर ज़मीन बहुत नर्म थी और चांदनी पत्तों की ओट से छनती हुई आ रही थी और मेंढ़क हौले हौले गा रहे थे और झील का पानी बार-बार किनारे को चूमता जाता था और उस के चूमने की सदा बार-बार हमारे कानों में आ रही थी। मैंने दोनों हाथ, उस की कमर में डाल दिए और उसे ज़ोर ज़ोर से अपने सीने से लगा लिया।...
छत को देखता थाछत की कड़ियों में
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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