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नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ को क्या इल्म था इख़्लास किसे कहते हैं
क्या है दरिया का सुकूँ प्यास किसे कहते हैं
बालमोहन पांडेय
नज़्म
जो वाक़िफ़ नहीं तेरे दर्द-ए-निहाँ से
इसे भी तो ज़िल्लत की पाबंदगी के लिए आल-ए-कार बनना पड़ेगा