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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरी जाँ गो तुझे दिल से भुलाया जा नहीं सकता
मगर ये बात मैं अपनी ज़बाँ पर ला नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
कुछ तो नज़्म-ओ-नक़्श-ए-मुल्क में भी दीजिए दख़्ल
शेवा-ए-हक़-तलबी है ये कोई जंग नहीं
शिबली नोमानी
नज़्म
अभी तो आरज़ू-ए-वस्ल ने दोनों दिलों में घर बसाया था
अभी इस हिज्र के डर ने उसे बे-दख़्ल कर डाला
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
मिरी जाँ गो तुझे दिल से भुलाया जा नहीं सकता
मगर ये बात मैं अपनी ज़बाँ पर ला नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था