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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं ने तोड़ा मस्जिद-ओ-दैर-ओ-कलीसा का फ़ुसूँ
मैं ने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़बाँ पर हैं अभी इस्मत ओ तक़्दीस के नग़्मे
वो बढ़ जाती है इस दुनिया से अक्सर इस क़दर आगे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
रूह-ए-तक़्दीस-ओ-वफ़ा मर्सियाँ-ख़्वाँ हो जैसे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
मेरी परवीन-ए-तख़य्युल, मिरी नसरीन-ए-निगाह
मैं ने तक़्दीस के फूलों से सजाया है तुझे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
औज-ए-तक़्दीस को पस्ती की अदा भा गई क्यूँ
तेरी तन्हाई की जन्नत पे ख़िज़ाँ छा गई क्यूँ
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मिरी तारीक फ़ितरत में भी इक तक़्दीस का शोअ'ला
किसी कैफ़-ए-दरूँ से फूट जाता है