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नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अक़्ल की मंज़िल है वो इश्क़ का हासिल है वो
हल्क़ा-ए-आफ़ाक़ में गर्मी-ए-महफ़िल है वो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़
इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गिर्या-ए-सरशार से बुनियाद-ए-जाँ पाइंदा है
दर्द के इरफ़ाँ से अक़्ल-ए-संग-दिल शर्मिंदा है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बसारतें क्या बसीरतें भी तो अक़्ल-ओ-दानाई खो चुकी हैं
न जाने कितने ही रंग मख़्फ़ी हैं इस धनक में
तारिक़ क़मर
नज़्म
अगर हो दिल को सहारा किसी की चाहत का
वो प्यार जिस में न हो अक़्ल ओ दिल की यक-जेहती