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नज़्म
मुंतज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़रा देख उस को जो कुछ हो रहा है होने वाला है
धरा क्या है भला अहद-ए-कुहन की दास्तानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
''बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नज़र आता है यूँ लगता है जैसे ये बला-ए-जाँ
मिरा हम-ज़ाद है हर गाम पर हर मोड़ पर जौलाँ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
रफ़्ता ओ हाज़िर को गोया पा-ब-पा इस ने किया
अहद-ए-तिफ़्ली से मुझे फिर आश्ना इस ने किया