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नज़्म
महफ़िल-ए-ज़ीस्त पे फ़रमान-ए-क़ज़ा जारी है
शहर तो शहर है गाँव पे भी बम्बारी है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म का तूफ़ाँ भी अगर आए तो कुछ फ़िक्र न कर
क़ौम का दर्द हर इक दिल में मगर पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
लाखों थे भीम अर्जुन बलराम श्याम 'रघुबर'
थे तीर जिन के ज़ेवर बिस्तर थे जिन के ख़ंजर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-पदमनी गहवारा-ए-प्रतापी भीम
रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-ज़माना देखने आया हूँ मैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
प्रेम का बल है मेरे मन में भीम का तन में ज़ोर
उत्तर दक्खन पूरब पच्छिम धूम है चारों ओर
मासूम शर्क़ी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से