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नज़्म
शजर है फ़िरक़ा-आराई तअस्सुब है समर उस का
ये वो फल है कि जन्नत से निकलवाता है आदम को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह बद-क़िस्मत रहे आवाज़-ए-हक़ से बे-ख़बर
ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया