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नज़्म
गो कि बाक़ी नहीं कैफ़िय्यत-ए-तूफ़ान-ए-शबाब
फँस के जंजाल में दुनिया के ये क़िस्सा हुआ ख़्वाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बज़्म-ए-आलम में वो कैफ़ियात-ए-रंग-ओ-बू नहीं
रौनक़-ए-ऐवान-ए-गेती आज शायद तू नहीं
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ज़मान मलिक
नज़्म
हल्की हल्की चाँदनी कैफ़ियत-ए-गुल-गश्त-ए-बाग़
वो लब-ए-जू आह हुस्न ओ इश्क़ के दो शब चराग़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
कैफ़िय्तय-ए-क़ब्ज़ उस की तबीअ'त में रहेगी
ज़ेहन उस का मज़ाफ़ात-ए-तअत्तुल में मिलेगा
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
अब तक असर में डूबी नाक़ूस की फ़ुग़ाँ है
फ़िरदौस-ए-गोश अब तक कैफ़िय्यत-ए-अज़ाँ है