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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरी चीन-ए-जबीं ख़ुद इक सज़ा क़ानून-ए-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कार-ए-सज़ा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जबीं पर साया-गुस्तर परतव-ए-क़िंदील-ए-रहबानी
अज़ार-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक पर शफ़क़ की रंग-अफ़्शानी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तक़दीर के क़ाज़ी का ये फ़तवा है अज़ल से
है जुर्म-ए-ज़ईफ़ी की सज़ा मर्ग-ए-मुफ़ाजात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरी और मेरी ख़ताओं की सज़ा क्यूँ भुगतें
उन पे क्यूँ ज़ुल्म हो जिन की कोई तक़्सीर नहीं