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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बचपन की शायरी

बचपन में आकाश को छूता सा लगता था

इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से

ग़रीबी का खरा सोना चमकता है

फ़राग़ रोहवी

हम तो बचपन में भी अकेले थे

सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

जावेद अख़्तर

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से

कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं

बशीर बद्र

इन से वाबस्ता है मिरा बचपन

मैं खिलौनों की क़द्र करता हूँ

बशीर महताब

मेरा बचपन भी साथ ले आया

गाँव से जब भी गया कोई

कैफ़ी आज़मी

बचपन में हम ही थे या था और कोई

वहशत सी होने लगती है यादों से

अब्दुल अहद साज़

मैं ने बचपन की ख़ुशबू-ए-नाज़ुक

एक तितली के संग उड़ाई थी

अफ़ज़ाल नवेद

मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई

आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में

आलम ख़ुर्शीद

बचपन कितना प्यारा था जब दिल को यक़ीं जाता था

मरते हैं तो बन जाते हैं आसमान के तारे लोग

अज़रा नक़वी

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