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बेस्ट दीन शायरी

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो

क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया

मीर तक़ी मीर

यही है इबादत यही दीन ईमाँ

कि काम आए दुनिया में इंसाँ के इंसाँ

अल्ताफ़ हुसैन हाली

आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए

ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर

बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है

मैं चल दिया ये कह के कि आदाब अर्ज़ है

अकबर इलाहाबादी

उठा हिजाब तो बस दीन-ओ-दिल दिए ही बनी

जनाब-ए-शैख़ को दावा था पारसाई का

इस्माइल मेरठी

दुनिया को दीन दीन को दुनिया करेंगे हम

तेरे बनेंगे हम तुझे अपना करेंगे हम

मंज़र लखनवी

अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी

आफ़ाक़ तमाम दहरिया है

आबरू शाह मुबारक

दीन दुनिया का जो नहीं पाबंद

वो फ़राग़त तमाम रखता है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ले गया दे एक बोसा अक़्ल दीन दिल वो शोख़

क्या हिसाब अब कीजे कुछ अपना ही फ़ाज़िल रह गया

शाह नसीर

ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है

रिश्ते से तेरे सुब्हा के ज़ुन्नार ही भला

ताबाँ अब्दुल हई
बोलिए