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अल्ताफ़ हुसैन हाली

1837 - 1914 | दिल्ली, भारत

उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल/महत्वपूर्ण पूर्वाधुनिक शायर/मिजऱ्ा ग़ालिब की जीवनी ‘यादगार-ए-ग़ालिब लिखने के लिए प्रसिद्ध

उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल/महत्वपूर्ण पूर्वाधुनिक शायर/मिजऱ्ा ग़ालिब की जीवनी ‘यादगार-ए-ग़ालिब लिखने के लिए प्रसिद्ध

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ग़ज़ल 28

नज़्म 13

अशआर 49

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना

मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा

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हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और

आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ

माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत

है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत

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सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती

चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की

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होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की

दिल चाहता हो तो ज़बाँ में असर कहाँ

हास्य 1

 

रुबाई 18

क़िस्सा 4

 

लेख 10

पुस्तकें 275

चित्र शायरी 4

 

वीडियो 13

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सत्या मुआसिर

फ़रीदा ख़ानम

सत्या मुआसिर

सत्या मुआसिर

आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम

फ़िरदौसी बेगम

वो नबियों में रहमत लक़ब पाने वाला

अज्ञात

है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ

एजाज़ हुसैन हज़रावी

अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं

फ़िरदौसी बेगम

आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम

मेहदी हसन

आलिम ओ जाहिल में क्या फ़र्क़ है

सत्या मुआसिर

मिट्टी का दिया

झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया अज्ञात

है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ

अज्ञात

है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ

इक़बाल बानो

ऑडियो 8

कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है

कर के बीमार दी दवा तू ने

ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम

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