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बेस्ट शाम शायरी

उर्दू शायरी में शाम का दिलचस्प इस्तेमाल किया गया है | क्लासिक शायर से लेकर पोस्टमॉडर्न शायरों तक शाम का ख़ूबसूरत सफ़र रहा है | पेश है चंद शायरी शाम के नाम |

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

दिल को कई कहानियाँ याद सी के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठे

शाम आए और दिल के लिए कोई घर हो

अख़्तर उस्मान

गई याद शाम ढलते ही

बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

मुनीर नियाज़ी

शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास

सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास

साग़र आज़मी

शाम ढले इक वीरानी सी साथ मिरे घर जाती है

मुझ से पूछो उस की हालत जिस की माँ मर जाती है

अज्ञात

शाम ही से बरस रही है रात

रंग अपने सँभाल कर रखना

रसा चुग़ताई

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं

सूरज डूब के मेरे घर में निकला था

ज़ेहरा निगाह

अँधेरी शाम थी बादल बरस पाए थे

वो मेरे पास था और मैं खुल के रोया था

मोहम्मद इज़हारुल हक़

शाम ढलते ही दिल के आँगन से

दर्द का कारवाँ गुज़रता है

अरशद नईम

शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी

माह-ए-ताबाँ अब भी है महर-ए-दरख़्शाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
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